गांवों के लिए पेयजल सुविधा
रास्ट्रीय जल दिवस पर विशेष (22 मार्च )
हमारे देश के
गाँवों में रहने वाले एक लाख से अधिक घरों में रहने वाले पाँच करोड़ से भी अधिक
लोगों के पास आज भी स्वच्छ पेयजल की सुविधा नहीं है। अधिकारिक आंकडों के अनुसार
कम से कम 22 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को पानी लाने के लिए आधा किलोमीटर और उसे भी
अधिक दूर पैदल चलना पड़ता है(इसमें अधिकतर बोझ महिलाओं को ढोना पड़ता है)। ऐसे
परिवारों का अधिकतर प्रतिशत भाग मणिपुर, त्रिपुरा, उड़ीसा, झारखण्ड, मध्यप्रदेश
और मेघालय में है। गांवों में 15 प्रतिशत परिवार बिना ढके कुओं पर निर्भर करते हैं
तो दूसरे अपरिष्कृत पेय जल संसाधनों जैसे नदी, झरने और पोखरों आदि पर निर्भर करते
हैं। गावों के 85 प्रतिशत पेय जल संसाधन भूमिगत जल पर आधारित हैं और इनमें कई का
पानी दूषित होता है। गांवों की केवल 30.80 प्रतिशत आबादी के पास ही नल के पानी की सुविधा
है। वास्तव में केवल चार ही राज्य ऐसे हैं जो पचास प्रतिशत अथवा उससे अधिक गावों
के क्षेत्रों को पाईप आपूर्ति की पेय जल व्यवस्था के अन्तर्गत लाने में सक्षम
हो पाये हैं। कई राज्यों को अभी भी उच्चतम न्यायालय के सरकारी विद्यालयों में
पीने योग्य पानी की आपूर्ति के आदेश का अनुपालन करना है। नवीनतम उपलब्ध आंकडें
दर्शाते हैं कि गांवों के 44 प्रतिशत से भी कम सरकारी विद्यालयों में पेय जल की
सुविधा है।
राष्ट्रीय
पेय जल कार्यक्रम में और संबंधित विषयों की प्रगति पर हाल ही में दिल्ली में
आयोजित राष्ट्रीय परामर्श में यह उद्घाटित हुआ कि पीने योग्य पानी पर इस
असंतोषजनक परिदृश्य से अलग कई राज्य केन्द्र द्वारा विभिन्न राष्ट्रीय
ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम के अन्तर्गत आवंटित धनराशि का भी उपयोग नहीं कर पाये
हैं।
सभी
गांवों को पेय जल सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सरकार 12 वीं पंचवर्षीय योजना के
दौरान राष्ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम में प्रमुख रणनीतिक बदलाव लाने जा रही
है। देश के अधिकतर हिस्सों में अति भूमिगत जल संग्रह की पृष्ठभूमि में भूमिगत जल
से सतही जल उपयोग की तरफ जाने पर जोर दिया जा रहा है। हैण्डपंप के प्रयोग को कम
करते हुए पाईप द्वारा जलापूर्ति पर ध्यान दिया जाएगा। आज के 13 प्रतिशत परिवारों
के कनेक्शन की तुलना में 2017 तक 35 प्रतिशत परिवारों को कनेक्शन सुनिश्चित करने
का लक्ष्य रखा गया है।
ग्रामवासियों
को यह कनेक्शन लेने के प्रति उत्साहित करने के क्रम में सरकार ने इसे मान्यता
प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) से जोड़ा है। हाल में जारी एक
आदेश में कहा गया है कि आशा कार्यकर्ताओं को यह कनेक्शन लगवाने के लिए उत्साहित
करने पर प्रति परिवार 75 रू का लुभाव दिया जाएगा। राज्य राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल
कार्यक्रम सहायता के अन्तर्गत आवंटित धनराशि का उपयोग कर सकते हैं।
काफी
पहले 1972 में प्रति व्यक्ति प्रति दिन 40 लीटर पानी देने का मानक तय किया गया था
परंतु अब 12 वीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत इसे बढ़ाकर 40 लीटर से 55 लीटर कर
दिया गया है। 12 वीं पंचवर्षीय योजना का लक्ष्य परिवारों को उनके घर में अथवा 100
मीटर के व्यास के भीतर कम से कम आधी आबादी को 55 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन
पानी उपलब्ध कराने के दायरे में लाने का है। एक बार राज्य प्रति व्यक्ति पेयजल
उपलब्धता बढ़ाने की योग्यता पा लेते हैं तो यह कुछ हद तक गांवों और शहरों के बीच
के अंतर को पाटने का काम करेगा। राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अन्तर्गत
राज्यों के पास अपने जलापूर्ति मानक निर्धारित करने का लचीलापन है।
पेय जल एवं स्वच्छता मंत्री श्री भारतसिंह सोलंकी राज्यों से 55 लीटर प्रति व्यक्ति
प्रतिदिन का लक्ष्य निर्धारित करने की प्रार्थना कर चुके हैं, वह कहते हैं कि यह
परिवारों कनेक्शनों का उच्च स्तर पाने में सक्षम करेगा और महिलाओं पर से हैण्डपंप
और सार्वजनिक नलों से पानी लाने का बोझ कम करेगा और ठीक उसी प्रकार दूषित जल के
खतरों को भी कम करेगा।
गांवों
में गुणात्मक पेयजल की उपलब्धता एक प्रमुख चिंता का विषय है, देश के कई भाग
विषाक्त और फ्लोराइड दूषण से प्रभावित हैं जो कि स्वास्थ्य पर प्रभाव की
दृष्टि से सबसे अधिक खतरनाक माना जाता है। देश में अभी 2000 विषाक्त और 12000
फ्लोराइड प्रभावित ग्रामीण आवास है जिसके कारण 2013-14 के लिए प्रस्तावित बजट में
1400 करोड़ रूपये उपलब्ध कराने का प्रावधान जल शुद्धिकरण की परियोजनाएं स्थापित
करने के लिए किया गया है। तब भी लौह, स्लेनिटी युरेनियम और कीटनाशक जैसा दुषण भी
है। केन्द्र उन राज्यों को जो कि रासायनिक पेय जल दुषण और वह राज्य जो कि
जापानी और गहन एन्सिफलाईटिस सिंड्रोम के केस हैं, उनको पेय जल गुणवत्ता सुधार के
तहत राष्ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम के अंतर्गत 5 प्रतिशत आवंटन का प्रावधान
है।
पेय
जल गुणवत्ता वाले सवालों के बढ़ रहे महत्व को छोड़कर सामान्य राष्ट्रीय
ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम के लिए राज्यों का आवंटन से पहले और उपर 12वीं योजना के
अंतर्गत राज्यों के गुणवत्ता प्रभावित आवासों को समर्पित धनराशि उपलब्ध कराई
जायेगी। विषाक्त और फ्लोराईड प्रभावित आवासों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जायेगी।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा पहचाने गये जापानी और गहन एन्सेफ्लाईटिस
सिन्ड्रोम के बड़े मामलों की प्राथमिकता वाले जिलों को आवंटन का एक हिस्सा बेक्टेरिया
दूषण से निपटने के लिए भी उपलब्ध कराया जायेगा।
दुर्भाग्य
पूर्ण ढंग से कई राज्यों जैसे- छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर,
झारखंड, केरल, उत्तराखंड और त्रिपुरा ने अभी तक पेय जल गुणवत्ता के लिए
निर्धारित की गई 5 प्रतिशत राशि पाने के लिए अपना प्रस्ताव भी दाखिल नहीं किया
है।
दुनिया
भर में पेय जल और स्वच्छता की कमी के कारण होने वाली बीमारियों और मौतों का
आंकड़ा 9 प्रतिशत और 6 प्रतिशत है। वहीं हमारे देश में आधी से अधिक आबादी खुले में
शौच पर आश्रित है, जो कि कहीं अधिक बदतर हालात हैं।
इस परिदृश्य में 12वीं
योजना का जोर ग्रामीण पेय जल आपूर्ति और ग्रामीण स्वच्छता को मजबूत करने के लिए
गांवो को पाईप जल आपूर्ति और खुले में शौच से मुक्त करने की स्थिति को प्राप्त
करने की ओर अभिमुख होने की प्राथमिकता है।
12वीं योजना का दस्तावेज़
प्रारूप कहता है कि सभी सरकारी ईमारतों और समुदायिक भवनों में विद्यालयों और
आंगनवाडि़यों को पेय जल के लिए जलापूर्ति और शौचालय राष्ट्रीय ग्रामीण पेय जल
कार्यक्रम में निर्धारित गुणवत्ता मानकों के अनुरूप उपलब्ध कराये जायेंगे जो कि
वर्तमान विद्यालयों और सर्व शिक्षा अभियान एवं सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत स्थापित
नये विद्यालयों के लिए भी हैं। निजी विद्यालयों के लिए यह शिक्षा अधिकारों के
प्रावधानों के तहत अमल में लाया जायेगा। सभी समुदायिक शौचालय सरकारी धनराशि से
बनेंगे और इनका जनता के उपयोग के लिए रख-रखाव राष्ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम
के अंतर्गत चल रही जलापूर्ति द्वारा किया जायेगा। इस बात का ध्यान रखा जायेगा कि
नाईट्रेट दूषण से बचाव के लिए शौचालयों और जल स्रोतों के बीच एक न्यूनतम अंतर रखा
जायेगा।
राष्ट्रीय ग्रामीण
पेय जल कार्यक्रम के एक भाग का प्रारूप शहरी क्षेत्रों के अनुरूप ग्रामीण
क्षेत्रों में आवास, पेय जल और शौच सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए एकीकृत आवास
सुधार परियोजनाओं की स्थापना करेगा।
पेय जल योजना
लाभार्थियों विशेषकर महिलाओं की भागीदारी भी प्रस्तावित है।
एक अन्य पहल कदमी के रूप में नवीन एवं नवीकरणीय
ऊर्जा मंत्रालय द्वारा दी जा रही सब्सिडी पर उन क्षेत्रों के सुदूर एवं छोटे
आवासों को सौर ऊर्जा पंप उपलब्ध कराये जायेंगे जहां पर ऊर्जा आपूर्ति अनियमित है।
अपशिष्ट जल शोधन और रिसाईक्लिंग प्रत्येक
जलापूर्ति योजना और परियोजना का एकीकृत भाग होगा।
भारत तेजी से जल का दबाव झेल
रहा देश बन रहा है और सबसे उपर और पहले पेय जल स्रोतों को प्रदूषण से बचाने के लिए
जाग्रति पैदा करने, पेय जल स्रोतों के नियमित परीक्षण, वर्षा जल का टेंकों और
तालाबों में संरक्षण, जल पुनर्भरण और जल बचत उपकरणों की आवश्यकता है। जिससे की
देश में हर कोई पेय जल की बुनियादी सुविधा प्राप्त करने में सक्षम हो सके।