सोमवार, 3 जून 2013

नक्सलवाद और भारत

नक्सलवाद  और  भारत 

  
              मई  2 0 1 3  वह  दिन जब नक्सलियों ने देश के सबसे बड़े  राजनितिक दल कांग्रेस  के काफिले पर गुरिल्ला तकनीक  से  हमला किया और  २ ९  कांग्रेसी  नेताओ को गोलियों से छलनी -छलनी कर दिया .नक्सलियों द्वारा घात लगा कर किया गया यह हमला अब तक का किसी राजनितिक दल  किया गया सबसे बड़ा हमला था  यह हमला ठीक उस समय किया गया जब कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित  सुकूमा छेत्र  में जा  रही थी .

रविवार, 14 अप्रैल 2013

उच्चव रक्ताचाप पर नियंत्रण

उच्‍च रक्‍तचाप पर नियंत्रण



      विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य दिवस 2013 का थीम है - उच्‍च रक्‍तचाप यानि हाइपरटेंशन। इससे दिल का दौरा, ह्दयाघात और गुर्दे फेल होने का खतरा बढ़ता है और यदि इसे अनियंत्रित छोड़ दिया गया तो अंधापन, दिल की अनियमित धड़कन और दिल का रूकना, रक्‍त-नाडि़यों  का फटना तथा मस्तिष्‍क में खराबी पैदा हो सकती है। हर तीन प्रौढ़ व्‍यक्तियों में से एक इससे प्रभावित है और हर साल दुनिया में इसके कारण 90 लाख से अधिक मौतें होती है।
    
     ह्दय, शरीर का एक अद्भुत अंग है, जो बिना रूके दिन-रात काम करता है तथा एक मिनट में 70 बार धड़कते हुए दिन में एक लाख बार धड़कता है। यह हजारों किलोमीटर लम्‍बी रक्‍त-नाडि़यों के जरिए शरीर की प्रत्‍येक कोशिका को पोषित करता है। ह्दय से जाने वाले रक्‍त और ह्दय में लौटने वाले रक्‍त का सही दिशा में संचालन रक्‍त वाहक वाल्‍व के जरिए होता है। स्‍टेथोस्‍कॉप में जो आवाज सुनाई देती है, वह इन्‍हीं वाल्‍वों के चलन की होती है।

     उच्‍च रक्‍तचाप से धमनियां कड़ी होकर संकुचित हो जाती है, जिससे ह्दय या मस्तिष्‍क तक रक्‍त के पहुंचने में रूकावट आती है और दिल का दौरा पड़ता है। रक्‍तचाप अधिक होने के कोई शुरूआती लक्षण नहीं दिखायी देते हैं। जिनमें उच्‍च रक्‍तचाप होता है, उन्‍हें तब तक कोई तकलीफ महसूस नहीं होती है, जब तक ह्दयाधात न हो जाये। यही कारण है कि उच्‍च रक्‍तचाप को प्राय: ‘’साइलेंट कि‍लर’’ भी कहते है।

     अचानक मृत्‍यु की स्थिति को सबसे पहले ग्रीस के चिकित्‍सक हिप्‍पोक्रेट्स ने ईसा पूर्व 5वीं शताब्‍दी में समझा, जिसे ज्‍यादातर मोटापे के कारण माना गया। 1628 में विलियम हारवे ने रक्‍त संचार की सही प्रकृति का पता लगाया। स्‍टीफन हेल्‍स ने पहली बार 1733 में धमनियों में रक्‍तचाप को मापा। 1819 में स्‍टेथोस्‍कॉप का आविष्‍कार हुआ। 1956 में विकसित तकनीकों से ह्दय में रक्‍त पहुंचाने वाली विभिन्‍न रक्‍त - नाडि़यों, इन में रूकावट और ह्दय वाल्‍वों के कार्य को समझा।
    
     फियोदोर लाइनेन ने पता लगाया कि मानव कोशिकाओं में किस तरह कॉलेस्‍ट्रोल बनता है, जिसके बाद रक्‍त में चर्बी की मात्रा को नियंत्रित करने के तरीके ढूंढे गए। 1985 में मिशेल ब्राउन और जोसेफ गोल्‍डस्‍टेन ने पता लगाया कि कम घनत्‍व वाला लिपो-प्रोटीन, जो कॉलेस्‍ट्रोल को रक्‍त से कोशिकाओं में ले जाता है, वह किस प्रकार ह्दय में रक्‍त पहुंचाने वाली नाडि़यों में जाकर जम जाता है, जिससे ह्दय आघात की संभावना बढ़ जाती है।

     जब रक्‍तचाप 140 और 90 एमएमएचजी या इससे अधिक होता है और साथ मधुमेह जैसी तकलीफ भी होती है, तो ह्दयाघात का खतरा बढ़ जाता है। 50 वर्ष या अधिक आयु आयु के हर तीन व्‍यक्तियों में से एक व्‍यक्ति में उच्‍च रक्‍तचाप की संभावना बढ़ जाती है।

     ह्दय रक्‍तवाहिनी नाडि़यों में खराबी के कारण दु‍निया में ज्‍यादा लोग मर रहे हैं, जिनमें अमीर और गरीब दोनों हैं। जो दिल के दौरे या ह्दयाघात से बच जाते हैं, उन्‍हें लंबे समय तक इलाज जारी रखना होता है। इन रोगों का बीमार व्‍यक्ति या उसके परिवार के सदस्‍यों के जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ता है।
    
     उच्‍च रक्‍तचाप को रोका जा सकता है। नमक की कम मात्रा लेने, संतुलित भोजन खाने, शराब का सेवन न करने, नियमित व्‍यायाम करने, शरीर का वज़न संतुलित रखने और तम्‍बाकू का इस्‍तेमाल न करने से इसका मुकाबला किया जा सकता है।
    
     ह्दय रक्‍तवाहिनियों में खराबी को कम करने में नमक की कम मात्रा की भूमिका महत्‍वपूर्ण है। कई देशों में जितना नमक का सेवन किया जाता है, उसका दो-तिहाई से ज्‍यादा नमक प्रसंस्‍कृत खाद्य पदार्थों और स्‍नैक्‍स या ब्रैड और पनीर जैसी चीजों में शामिल होता है। कई रेस्‍टोरेंट भी अधिक नमक, चिकनाई या मिठास वाले खाद्य पदार्थ उपलब्‍ध कराते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि उपभोक्‍ता केवल 20 प्रतिशत नमक की मात्रा को ही नियंत्रण में रख सकता है। ह्दय रक्‍तवाहिनी रोग को कम करने के लिए विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने 5 ग्राम प्रतिदिन यानि एक चम्‍मच से भी कम नमक प्रतिदिन देने की सलाह दी है।

     स्‍वस्‍थ ह्दय और शरीर में उचित रक्‍त संचार के लिए संतुलित भोजन का बहुत महत्‍व है। ऐसे भोजन में पर्याप्‍त फल और सब्जियां, साबुत अनाज, कम मांस, मछली और दालें तथा मामूली नमक, चीनी और चिकनाई शामिल होती है। इसके साथ हर रोज कम से कम आधे घंटे व्‍यायाम भी जरूरी है। तम्‍बाकू किसी भी रूप हो स्‍वास्‍थ्‍य के लिए हानिकारक है। सिगरेट के धुएं से भी नुकसान होता है।
    
     दुनिया के कुछ हिस्‍सों में 1980 से 2008 के बीच मोटे लोगों की संख्‍या दुगुनी हुई है। आज 50 करोड़ लोग यानि दुनिया की 12 प्रतिशत आबादी मोटापे से पीड़ित है। पुरूषों के मुकाबले महिलाएं मोटापे से ज्‍यादा प्रभावित हैं और उन्‍हें मधुमेह तथा  ह्दय रक्‍तवाहिनी रोगों का अधिक खतरा है।

     दुनिया के हर तीन प्रौढ़ व्‍यक्तियों में से एक व्‍यक्ति उच्‍च रक्‍तचाप से पीड़ित है। समझा जाता है कि इसके कारण 2004 में 75 लाख मौतें हुई, जो कुल मौतों का लगभग 13 प्रतिशत है। अधिक आमदनी वाले लगभग सभी देशों में रोग की पहचान और इलाज उपलब्‍ध होने के कारण ह्दय रोग से होने वाली मौतों में कमी आई है। उदाहरण के लिए 1980 में 30 - 40 प्रतिशत प्रौढ़ व्‍यक्तियों की अमरीका और यूरोप में उच्‍च रक्‍तचाप के कारण मौत हुई। 2008 में यह कम होकर 23-30 प्रतिशत रह गई। लेकिन अफ्रीकी क्षेत्र में उच्‍च रक्‍तचाप के कारण 40-50 प्रतिशत मौतें हुई। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के अनुसार ह्दय रक्‍तवाहिनी रोगों से 2008 में 73 लाख से अधिक मौतें हुई।
    
     समझा जाता है कि कई रोगों के मामलों में केवल जीवनचर्या बदलने से रक्‍तचाप को नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन कई मामलों में इलाज की जरूरत होती है। आंकड़ों से पता चलता है कि एसपिरिन के सेवन से कॉलेस्‍ट्रोल के स्‍तर को नियंत्रण में रखा जा सकता है। ऑक्‍सीकरण रोधी विटामिन ई और विटामिन सी के इस्‍तेमाल से रक्‍तवाहिनी धमनियों को कड़ा होने से रोका जा सकता है। लहसुन और प्‍याज जैसे प्राकृतिक रूप से मिलने वाले ऑक्‍सीकरण रोधी पदार्थों  का नियमित सेवन भी इस रोग में उपयोगी है।

गुरुवार, 28 मार्च 2013

गांवों के लिए पेयजल सुविधा


गांवों के लिए पेयजल सुविधा
रास्ट्रीय जल दिवस पर विशेष (22 मार्च )

हमारे देश के गाँवों में रहने वाले एक लाख से अधिक घरों में रहने वाले पाँच करोड़ से भी अधिक लोगों के पास आज भी स्‍वच्‍छ पेयजल की सुविधा नहीं है। अधिकारिक आंकडों के अनुसार कम से कम 22 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को पानी लाने के लिए आधा किलोमीटर और उसे भी अधिक दूर पैदल चलना पड़ता है(इसमें अधिकतर बोझ महिलाओं को ढोना पड़ता है)। ऐसे परिवारों का अधिकतर प्रतिशत भाग मणिपुर, त्रिपुरा, उड़ीसा, झारखण्‍ड, मध्‍यप्रदेश और मेघालय में है। गांवों में 15 प्रतिशत परिवार बिना ढके कुओं पर निर्भर करते हैं तो दूसरे अपरिष्‍कृत पेय जल संसाधनों जैसे नदी, झरने और पोखरों आदि पर निर्भर करते हैं। गावों के 85 प्रतिशत पेय जल संसाधन भूमिगत जल पर आधारित हैं और इनमें कई का पानी दूषित होता है। गांवों की केवल 30.80 प्रतिशत आबादी के पास ही नल के पानी की सुविधा है। वास्‍तव में केवल चार ही राज्‍य ऐसे हैं जो पचास प्रतिशत अथवा उससे अधिक गावों के क्षेत्रों को पाईप आपूर्ति की पेय जल व्‍यवस्‍था के अन्‍तर्गत लाने में सक्षम हो पाये हैं। कई राज्‍यों को अभी भी उच्‍चतम न्‍यायालय के सरकारी विद्यालयों में पीने योग्‍य पानी की आपूर्ति के आदेश का अनुपालन करना है। नवीनतम उपलब्‍ध आंकडें दर्शाते हैं कि गांवों के 44 प्रतिशत से भी कम सरकारी विद्यालयों में पेय जल की सुविधा है।
      राष्‍ट्रीय पेय जल कार्यक्रम में और संबंधित विषयों की प्रगति पर हाल ही में दिल्‍ली में आयोजित राष्‍ट्रीय परामर्श में यह उद्घाटित हुआ कि पीने योग्‍य पानी पर इस असंतोषजनक परिदृश्‍य से अलग कई राज्‍य केन्‍द्र द्वारा विभिन्‍न राष्‍ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम के अन्‍तर्गत आवंटित धनराशि का भी उपयोग नहीं कर पाये हैं।
      सभी गांवों को पेय जल सुविधा उपलब्‍ध कराने के लिए सरकार 12 वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान राष्‍ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम में प्रमुख रणनीतिक बदलाव लाने जा रही है। देश के अधिकतर हिस्‍सों में अति भूमिगत जल संग्रह की पृष्‍ठभूमि में भूमिगत जल से सतही जल उपयोग की तरफ जाने पर जोर दिया जा रहा है। हैण्‍डपंप के प्रयोग को कम करते हुए पाईप द्वारा जलापूर्ति पर ध्‍यान दिया जाएगा। आज के 13 प्रतिशत परिवारों के कनेक्‍शन की तुलना में 2017 तक 35 प्रतिशत परिवारों को कनेक्‍शन सुनिश्चित करने का लक्ष्‍य रखा गया है।
      ग्रामवासियों को यह कनेक्‍शन लेने के प्रति उत्‍साहित करने के क्रम में सरकार ने इसे मान्‍यता प्राप्‍त सामाजिक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता (आशा) से जोड़ा है। हाल में जारी एक आदेश में कहा गया है कि आशा कार्यकर्ताओं को यह कनेक्‍शन लगवाने के लिए उत्‍साहित करने पर प्रति परिवार 75 रू का लुभाव दिया जाएगा। राज्‍य राष्‍ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम सहायता के अन्‍तर्गत आवंटित धनराशि का उपयोग कर सकते हैं।
      काफी पहले 1972 में प्रति व्‍यक्ति प्रति दिन 40 लीटर पानी देने का मानक तय किया गया था परंतु अब 12 वीं पंचवर्षीय योजना के अन्‍तर्गत इसे बढ़ाकर 40 लीटर से 55 लीटर कर दिया गया है। 12 वीं पंचवर्षीय योजना का लक्ष्‍य परिवारों को उनके घर में अथवा 100 मीटर के व्‍यास के भीतर कम से कम आधी आबादी को 55 लीटर प्रति व्‍यक्ति प्रतिदिन पानी उपलब्‍ध कराने के दायरे में लाने का है। एक बार राज्‍य प्रति व्‍यक्ति पेयजल उपलब्‍धता बढ़ाने की योग्‍यता पा लेते हैं तो यह कुछ हद तक गांवों और शहरों के बीच के अंतर को पाटने का काम करेगा। राष्‍ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अन्‍तर्गत राज्‍यों के पास अपने  जलापूर्ति मानक निर्धारित करने का लचीलापन है। पेय जल एवं स्‍वच्‍छता मंत्री श्री भारतसिंह सोलंकी राज्‍यों से 55 लीटर प्रति व्‍यक्ति प्रतिदिन का लक्ष्‍य निर्धारित करने की प्रार्थना कर चुके हैं, वह कहते हैं कि यह परिवारों कनेक्‍शनों का उच्‍च स्‍तर पाने में सक्षम करेगा और महिलाओं पर से हैण्‍डपंप और सार्वजनिक नलों से पानी लाने का बोझ कम करेगा और ठीक उसी प्रकार दूषित जल के खतरों को भी कम करेगा।
      गांवों में गुणात्‍मक पेयजल की उपलब्‍धता एक प्रमुख चिंता का विषय है, देश के कई भाग विषाक्‍त और फ्लोराइड दूषण से प्रभावित हैं जो कि स्‍वास्‍थ्‍य पर प्रभाव की दृष्टि से सबसे अधिक खतरनाक माना जाता है। देश में अभी 2000 विषाक्‍त और 12000 फ्लोराइड प्रभावित ग्रामीण आवास है जिसके कारण 2013-14 के लिए प्रस्‍तावित बजट में 1400 करोड़ रूपये उपलब्‍ध कराने का प्रावधान जल शुद्धिकरण की परियोजनाएं स्‍थापित करने के लिए किया गया है। तब भी लौह, स्‍लेनिटी युरेनियम और कीटनाशक जैसा दुषण भी है। केन्‍द्र उन राज्‍यों को जो कि रासायनिक पेय जल दुषण और वह राज्‍य जो कि जापानी और गहन एन्‍सिफलाईटिस सिंड्रोम के केस हैं, उनको पेय जल गुणवत्‍ता सुधार के तहत राष्‍ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम के अंतर्गत 5 प्रतिशत आवंटन का प्रावधान है।
      पेय जल गुणवत्‍ता वाले सवालों के बढ़ रहे महत्‍व को छोड़कर सामान्‍य राष्‍ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम के लिए राज्‍यों का आवंटन से पहले और उपर 12वीं योजना के अंतर्गत राज्‍यों के गुणवत्‍ता प्रभावित आवासों को समर्पित धनराशि उपलब्‍ध कराई जायेगी। विषाक्‍त और फ्लोराईड प्रभावित आवासों को सर्वोच्‍च प्राथमिकता दी जायेगी। स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय द्वारा पहचाने गये जापानी और गहन एन्‍सेफ्लाईटिस सिन्‍ड्रोम के बड़े मामलों की प्राथमिकता वाले जिलों को आवंटन का एक हिस्‍सा बेक्‍टेरिया दूषण से निपटने के लिए भी उपलब्‍ध कराया जायेगा।   
      दुर्भाग्‍य पूर्ण ढंग से कई राज्‍यों जैसे- छत्‍तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, जम्‍मू और कश्‍मीर, झारखंड, केरल, उत्‍तराखंड और त्रिपुरा ने अभी तक पेय जल गुणवत्‍ता के लिए निर्धारित की गई 5 प्रतिशत राशि पाने के लिए अपना प्रस्‍ताव भी दाखिल नहीं किया है।
      दुनिया भर में पेय जल और स्‍वच्‍छता की कमी के कारण होने वाली बीमारियों और मौतों का आंकड़ा 9 प्रतिशत और 6 प्रतिशत है। वहीं हमारे देश में आधी से अधिक आबादी खुले में शौच पर आश्रित है, जो कि कहीं अधिक बदतर हालात हैं।
इस परिदृश्‍य में 12वीं योजना का जोर ग्रामीण पेय जल आपूर्ति और ग्रामीण स्‍वच्‍छता को मजबूत करने के लिए गांवो को पाईप जल आपूर्ति और खुले में शौच से मुक्‍त करने की स्थिति को प्राप्‍त करने की ओर अभिमुख होने की प्राथमिकता है।
12वीं योजना का दस्‍तावेज़ प्रारूप कहता है कि सभी सरकारी ईमारतों और समुदायिक भवनों में विद्यालयों और आंगनवाडि़यों को पेय जल के लिए जलापूर्ति और शौचालय राष्‍ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम में निर्धारित गुणवत्‍ता मानकों के अनुरूप उपलब्‍ध कराये जायेंगे जो कि वर्तमान विद्यालयों और सर्व शिक्षा अभियान एवं सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत स्‍थापित नये विद्यालयों के लिए भी हैं। निजी विद्यालयों के लिए यह शिक्षा अधिकारों के प्रावधानों के तहत अमल में लाया जायेगा। सभी समुदायिक शौचालय सरकारी धनराशि से बनेंगे और इनका जनता के उपयोग के लिए रख-रखाव राष्‍ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम के अंतर्गत चल रही जलापूर्ति द्वारा किया जायेगा। इस बात का ध्‍यान रखा जायेगा कि नाईट्रेट दूषण से बचाव के लिए शौचालयों और जल स्रोतों के बीच एक न्‍यूनतम अंतर रखा जायेगा।
राष्‍ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम के एक भाग का प्रारूप शहरी क्षेत्रों के अनुरूप ग्रामीण क्षेत्रों में आवास, पेय जल और शौच सुविधाओं को उपलब्‍ध कराने के लिए एकीकृत आवास सुधार परियोजनाओं की स्‍थापना करेगा।
पेय जल योजना लाभार्थियों विशेषकर महिलाओं की भागीदारी भी प्रस्‍तावित है।
एक अन्‍य पहल कदमी के रूप में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा दी जा रही सब्‍सिडी पर उन क्षेत्रों के सुदूर एवं छोटे आवासों को सौर ऊर्जा पंप उपलब्‍ध कराये जायेंगे जहां पर ऊर्जा आपूर्ति अनियमित है।
अपशिष्‍ट जल शोधन और रिसाईक्‍लिंग प्रत्‍येक जलापूर्ति योजना और परियोजना का एकीकृत भाग होगा।
भारत तेजी से जल का दबाव झेल रहा देश बन रहा है और सबसे उपर और पहले पेय जल स्रोतों को प्रदूषण से बचाने के लिए जाग्रति पैदा करने, पेय जल स्रोतों के नियमित परीक्षण, वर्षा जल का टेंकों और तालाबों में संरक्षण, जल पुनर्भरण और जल बचत उपकरणों की आवश्‍यकता है। जिससे की देश में हर कोई पेय जल की बुनियादी सुविधा प्राप्‍त करने में सक्षम हो सके।